एक
जंगल था,
स्याह
जंगल.
जंगल
में एक हाथ को दूसरा हाथ दिखाई
नहीं देता था.
उस
जंगल में एक सियार था और एक
था गधा.
गधा
सियार से कहीं अधिक बड़ा
और बलशाली था,
पर
था तो गधा ही इसलिए सियार
ने उसे अपने प्रश्रय में रखा
हुआ था.
सियार
मॉंस खाता और गधा खाता घास.
एक
दिन,
सियार
को घास में भी स्वाद आ गया और
वह घास भी खाने लगा.
यहां
तक कि वह गधे के हिस्से का
भी सारा जंगल खा गया.
गधा
रात को लेटा तो उसने फ़ैसला
किया कि वह सुबह सियार को
ढूंढ कर दुलत्ती मार विदा
कर देगा उस जंगल से.
उस
रात गधा भूखा सोया.
सुबह
सियार उसे ढूंढता आया और बोला
– ‘मुझे पता चला कि कल रात तू
भूखा सोया ?
ओह,
बड़ा
बुरा हुआ.
ख़ैर
कोई बात नहीं,
तू
मेरे साथ आ,
मैं
तुझे दिखाउंगा कि खाने के
लिए घास कैसे उगता है.’
गधा
तो गधा ठहरा,
मान
गया और फिर पेट पर पत्थर रख
सियार के प्रश्रय में हो
लिया,
एक
बार फिर घास उगने की उम्मीद
में.
उस
जंगल में भी घास पॉंच साल में
एक ही बार उगता था.
00000
हम सब गधे है.
जवाब देंहटाएंदिल्ली जंगल है
जवाब देंहटाएंइस समय की सत्ताधारी पार्टी सियार है
जवाब देंहटाएंदूसरी पार्टिया भी सियार होने की फिराक मे है.
जवाब देंहटाएंघास कभी कभी 13 महीने कभी दो साल कभी साढे चार साल और इस बार पौने पांच साल मे उगेगी
जवाब देंहटाएंआपने तो लघुकथा को कविता में परिवर्तित कर दिया. अहा :)
हटाएंस्पष्ट एवं सुन्दर कटाक्ष...
जवाब देंहटाएंगधा तो ज़िन्दगी भर गधा ही रहेगा ..क्या उम्मीद :(
जवाब देंहटाएंएक दिन गधे का दुलत्ती से भी पेटेंट जायेगा
जवाब देंहटाएंअबके दुलत्ती नहीं उठी तो कभी न उठ पाएगी!!
जवाब देंहटाएंbadhiya Dharadaar ...
जवाब देंहटाएंहम भी अब तो समझ पायें ... कब तक गधे रहेंगें :(
जवाब देंहटाएंएक गधा (दूसरे गधे से): यार मेरा मालिक बहुत मारता है।
जवाब देंहटाएंदूसरा गधा: तो तू भाग क्यों नहीं जाता?
पहला गधा: भाग तो सकता हूं, पर यहां भविष्य बहुत उज्ज्वल है। मालिक की खूबसूरत बेटी जब भी शरारत करती है तो मालिक कहता है, तेरी शादी गधे से करा दूंगा। बस इसी उम्मीद में बैठा हूं।
देखिये क्या होता है, उम्मीद पर गधे क़ायम हैं :)
इतना बढिया व्यंग्य .....वाह जी
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