क का बेटा नालायक निकला. ठीक से पढ़ा-लिखा नहीं. पढ़े लिखों का ही
यूं कौन ठिकाना था कि कोई उसके बेटे को पूछता. माल-मत्ता उसके पास था नहीं कि कोई लंबा-चौड़ा
काम धंधा उसे खोल कर दे देता. मध्यवर्गीय जीवन ने बेटे को कई चस्के लगा छोड़े थे सो,
छोटी मोटी नौकरी भी अब उसके बूते की नहीं थी. क दु:खी रहने लगा.
उसे लगा कि सन्यास ले लेना
चाहिए. वह हिमालय की ओर निकल गया. यहां वहां रूकते रूकते चलता रहा वो. भूख लगती तो
कि कहीं कहीं पूजा-अर्चना की जगहों में खा-पी लेता. फिर आगे निकल जाता. यूं ही एक दिन
लंगर खाते खाते उसे ध्यान आया कि आख़िर ये सब सामान आता कहां से है. इस एक सवाल ने
उसकी आंखों में चमक ला दी थी.
वह लौट आया. सारी जमा पूंजी
इकट्ठी की और बेटे के लिए एक छोटा सा मल्टी रिलीजन पूजा स्थल खुलवा दिया. अब उसका बेटा
एक सी इ ओ तरह उसका रख-रखाव करता है. धीरे-धीरे आसपास की ज़मीन ख़रीद रहा है, कमरे
जोड़ रहा है, रेगुलर भंडारे करता है, डिस्पेंसरी भी खोल ली है, नैचुरोपैथी-टाइप अस्पताल
का प्लान है, भक्तों के लिए सफ़ारी भी चालू की है, आश्रम और गैस्ट हाउस से गुजारा नहीं
हो रहा है इसलिए भक्तों के लिए एक होटल चेन से भी बातचीत चल रही है…
क अब प्रसन्न रहता है.
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यही तो सूत्र है कामयाबी का पंथनिरपेक्ष होने का .
जवाब देंहटाएंKamyabi ka ek sutra jaroor hota hai
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