उसे बड़ा अच्छा लगता था धरने-प्रदर्शनों में भाग लेना. जैसे श्मशान, शादी, जलसों बगैहरा के लिए शहर में अलग अलग जगहें निश्चित रहती हैं ठीक वैसे ही सरकार ने विरोध प्रदर्शनों के लिए भी शहर में एक जगह तय कर रखी थी. वह उसी जगह के आस पास रहता था जहां आकर ये विरोध-प्रदर्शन समाप्त होते थे. उसे पता था कि पुलिस और प्रदर्शन के आयोजकों के बीच किस-किस दिन क्या-क्या तय रहता था.
|
उन सर्दियों में एक नया थानेदार आया. उसने वहां भी धरने-प्रदर्शनों पर रोक लगा दी. ग़जब की ठंड पड़ी उस साल और एक सुबह वह झंडे-बैनरों के नीचे ठंड से अकड़ कर मरा पाया गया.
|
00000
|
एक बहुत ही गरीब आदमी की ज़िंदगी कि हकीकत को ब्यान करती बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमार्मिक व्यंग्य प्रेम चंद की पूस की रात की याद दिला गया .कृपया सार्दियों शब्द ठीक करलें (सर्दियों )कर लें .
जवाब देंहटाएंत्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबेचारा,अभिव्यक्ति के दमन का मारा ...
जवाब देंहटाएं