नेता-विपक्ष
पर गाज गिरी तो उन्हें अपने पद से स्तीफा देना पड़ा. अब नए की ढूंढ मची. जहां
एक तरफ हर कोई खींचतान करने लगा तो वहीं दूसरी तरफ हर कोई धोती नुचैया भी होने लगा.
नादिरशाही से डरी हाई कमान ने एक भौंदू नेता ढूंढा और उसके भागों छीका तोड़ उसे निर्विवाद
नेता-विपक्ष निर्वाचित करवा दिया. पर सिर मुंडाते ही ओले पड़े, पता चला कि उसी
दिन तो बजट पेश होने वाला था. ‘और कुछ हो न हो, अखबार-टी.वी. वाले ज़रूर पूछेंगे
कि आपकी नज़र में बजट कैसा रहा’- नेता ने सोचा.

नेता
जी याद करने की मुद्रा में सोचने लगे तो पी.एस. ने ढाढस बंधवाया –‘सर, अगर आप जवाब
देते हुए भूल जाएं कि किस तरह के बजट के लिए किस तरह का जवाब देना है तो, आप
इनमें से कोई भी जवाब दे दीजिए कुछ फ़र्क नहीं पडेगा, कोई भी जवाब किसी भी तरह
के बजट के साथ फ़िट हो सकता है. आजतक ऐसा ही होता आया है.’ फिर दोनों ने खीस निपोर
दी.
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आज तक ऐसा ही होता आया है ..... सच में
जवाब देंहटाएं....डिफॉल्ट स्पीच होती है !
जवाब देंहटाएंbadhiya laghu katha
जवाब देंहटाएंबजट चाहे जैसा हो बिपक्ष अपनी भाषा तो बोलेगा ही,,,,
जवाब देंहटाएंRecent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
वाकई !सब कुछ स्क्रिप्टेड ही है एक जैसा !
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली कथा !