बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

(लघुकथा) बजट


नेता-वि‍पक्ष पर गाज गि‍री तो उन्‍हें अपने पद से स्‍तीफा देना पड़ा. अब नए की ढूंढ मची. जहां एक तरफ हर कोई खींचतान करने लगा तो वहीं दूसरी तरफ हर कोई धोती नुचैया भी होने लगा. नादि‍रशाही से डरी हाई कमान ने एक भौंदू नेता ढूंढा और उसके भागों छीका तोड़ उसे नि‍र्वि‍वाद नेता-वि‍पक्ष नि‍र्वाचि‍त करवा दि‍या. पर सि‍र मुंडाते ही ओले पड़े, पता चला कि‍ उसी दि‍न तो बजट पेश होने वाला था. ‘और कुछ हो न हो, अखबार-टी.वी. वाले ज़रूर पूछेंगे कि‍ आपकी नज़र में बजट कैसा रहा’- नेता ने सोचा.

नेता जी ने पी.एस. को पकड़ा और उसे बाथरूम में ले गए, धीरे से फुसफुसाए कि‍ गुरू बताओ ऐसे में मैं क्‍या करूंगा. पी.एस. सीज़न्‍ड था उसने बताया –‘सर, बजट तीन तरह का होता है. अच्‍छा, बुरा या न्‍यूट्रल. अगर बजट अच्‍छा हुआ तो आप कहना ये महँगाई बढ़ाने वाला बजट है जि‍से अगले चुनाव ध्‍यान में रख कर बनाया गया है. अगर बजट बुरा हुआ तो कहना कि‍ यह बजट आम आदमी वि‍रोधी तो है ही इससे वि‍कास भी अवरूद्ध हो जाएगा. और अगर बजट न्‍यूट्रल हुआ तो कहना कि‍ बजट में आम आदमी के लि‍ए कुछ भी नहीं है यह वि‍देशी दबाव में बनाया गया बजट है.’

नेता जी याद करने की मुद्रा में सोचने लगे तो पी.एस. ने ढाढस बंधवाया –‘सर, अगर आप जवाब देते हुए भूल जाएं कि‍ कि‍स तरह के बजट के लि‍ए कि‍स तरह का जवाब देना है तो, आप इनमें से कोई भी जवाब दे दीजि‍ए कुछ फ़र्क नहीं पडेगा, कोई भी जवाब कि‍सी भी तरह के बजट के साथ फ़ि‍ट हो सकता है. आजतक ऐसा ही होता आया है.’ फि‍र दोनों ने खीस नि‍पोर दी.
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