उस शहर की सड़क के फुटपाथ
पर तीन छोटू रहते थे, बड़ा छोटू, छोटा छोटू और बिचका छोटू. यही उनके नाम थे. पूरा
दिन यहां-वहां कूड़े में से, तीनों कुछ-कुछ काम की चीज़ें चुनते रहते और शाम को
एक कबाड़ी के यहां उन्हें बेचकर चार पैसे कमा लेते. फिर खा-पी कर रात को वहीं
फ़ुटपाथ से सटी दीवार के साथ लग सो रहते.
दीवार के दूसरी तरफ एक
पार्क था. पार्क भी कुछ उजड़ा हुआ सा ही था, उसमें कुछ जुआरी टाइप लोग कभी कभार आकर
बैठते, ताश खेलते, शोर शराबा करते और फिर चले जाते. उसी पार्क के एक कोने में
पांच पिल्ले अपनी मां के साथ रह रहे थे. पिल्ले बहुत छोटे थे. कभी कोई पिल्ला
पार्क से बाहर आ जाता तो उनकी मां घसीट कर उसे फिर पार्क में ले जाती. एक दिन
उन्होंने देखा कि उनमें से दो पिल्ले गुम थे. उनकी मां उस पूरी रात
कूं-कूं करती रही. अगले दिन, सड़क पार करते हुए उनकी मां को, एक कारवाला कुचल
गया. शाम को जब वे सोने के लिए लौटे तो उन्होंने पाया कि तीनों पिल्ले पार्क
से बाहर निकल कर घूम रहे हैं.
उस रात उन्होंने उन तीनों
पिल्लों को अपने पास सुला लिया. अब उनके परिवार में छ: लोग थे.
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