मंगलवार, 29 नवंबर 2011

(लघु कथा) लोकतंतर


क के यहां चुनाव हुए. सत्ता बदली.

क वाहर निकला तो देखा, सड़क पर झाड़ू लगाने वालों की फ़ौज आई थी. उनके हाथों में नए-नए झाड़ू थे और कूड़ा उठाने की नए डिज़ाइन की टोकरियां भी थी. एक सेनेटरी इंसपेक्टर डाकुओं की तरह मुंह पर रूमाल बांधे सफाई करवा रहा था. क बहुत गर्वित था कि – ‘वाह, देखा (!) इसे कहते हैं लोकतंत्र की ताक़त. सत्ता बदलते ही काम होने लगा न ! वर्ना आज तक तो कभी किसी ने सुध ही नहीं ली थी इस सड़क की सफाई की.’

तभी एक झाड़ूवाली ने क को हड़काया – ‘रे दीदे फूटे हैं क्या, बोरी पे ही चढ़ा चला आ रहा है. सफेद चूना गंदा हो गया तो सड़क के किनारे तेरा सिर डालूंगी क्या ?’ तब उसे समझ आया कि ये तैयारी तो जीतने वाले नेता की आवभगत में हो रही है.
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